मन

इस मन को पकड़ो कोई,
यह भागा देखो कही |
थकता नहीं यह,
डरता नहीं यह|
असीमित आशाओ की,
असीमित बाधाओं की ,
बुनता सँवारता
दुनिया यह कोई |
कहते है केशव,
मेरे मधुसुधन
मन के तुम स्वामी बनो,
उसके ना तुम आधीन हो,
यह कठिन जरूर है,
असंभव नहीं|
अभ्यास और वैराग्य रुपी तलवार
से होगा इस मन पर वार
तब हर लक्ष्य पाएँगे
हर चुनौती जीत जाएगें
मन के स्वामी कह लाएँगे
और कान्हा में रंग जाएगें |